अभ्यंग एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है “नहाना”। अभ्यंग स्नान मुख्य रूप से दीपावली के दिन ही किया जाता है। वैसे भी अब ये पिछले कुछ दशकों से रोज़ के रूटीन में आ गया है।
अभ्यंग स्नान की विधि मुख्य रूप से पूरे शरीर का सिर से लेकर पैरों तक की तेल से मालिश और नहाना है, और इस विधि में प्राकृतिक चीज़ों जैसे, मुल्तानी मिटटी, गोबर और हल्दी का प्रयोग किया जाता है।
इस स्नान में जिस तेल का प्रयोग किया जाता है वह “स्नानतन” नाम के एक पावडर का उपयोग किया जाता है जो वला, सुगन्धिकाचोरा, गुलाब, तिल और मुल्तानी मिटटी से बनाया जाता है।
यदि हम 60 साल पहले के भारतीय बाथरूम को देखें तो आज की तरह कोई साबुन, शैम्पू और कंडीशनर नहीं हुआ करते थे, लेकिन उस समय बाथरूम में मुल्तानी मिटटी, हल्दी, नीम्बू, गुलाब, नीम, गोबर और प्राकृतिक तेल हुआ करते थे।
आयुर्वेद के अनुसार, अभ्यंग स्नान की शुरुआत सबसे पहले सुबह गरम पानी पीने के साथ होती है। अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो सुबह का गरम पानी पीना और फिर नहाना, इन दोनों से पूरे शरीर का तापमान अंदर और बाहर से एक जैसा हो जाता है।
कई बार यह देखा गया है कि गरम पानी से नहाने के बाद सिर दर्द होता है, इसका मुख्य कारण है कि शरीर के अंदर और बहार के तापमान का अंतर। इसलिए आयुर्वेद में कहा गया है कि हलके गर्म पानी से नहाने के पहले, गरम पानी पीना अत्यंत आवश्यक है जिससे शरीर का तापमान अंदर और बाहर से एक सा रहे।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि खाने के पहले नहाना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि “भोजन” को अग्नि पैदा करने वाली पदार्थ की श्रेणी में रखा गया है। यदि आप भोजन के बाद नहाते हैं तो निश्चित रूप से आपको पेट में अपच के समस्या हो सकती है, क्योकि पानी और अग्नि एक साथ नहीं रह सकते हैं।
हमें गर्व है कि हम भारतीयों के पास वह जानकारी है जिसको हम कई शताब्दियों से उपयोग करते आ रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य से बहुत से लोग इसको वैज्ञानिक रूप से व्याख्या नहीं कर सकते, इसलिए वे इसको एक अन्धविश्वास मानते हैं और यह कितना महत्वपूर्ण है, ये भी नहीं जानते।
अभ्यंग स्नान के लाभ
- मांस पेशियों के लचीलेपन को कायम रखता है
- त्वचा को सूखने से बचाता है
- त्वचा में चमक पैदा करता है
- सूखी हुई त्वचा को निकलता है
- त्वचा के ऊपर चिकनाई के एक परत बनता है जिससे त्वचा स्वस्थ रहती है
- बालों की जड़ो को मज़बूत बनता है
- मानसिक और शारीरिक चोट को सहने के क्षमता बढ़ाता है
- महिलाओं को मासिक धर्म के समय अभ्यंग स्नान बिलकुल नहीं करना चाहिए
- आँखों की रौशनी में सुधार होता है
- वात पित्त और कफ का संतुलन शरीर में बना रहता है
अभ्यंग स्नान का क्रम
- सबसे पहले सिर
- गर्दन और चेहरा
- हाथ और कंधे
- छाती और पीठ
- और अंत में टाँगे और पैर के पंजे
इस पूरे क्रम में सिर्फ पानी से नहाना ही नहीं है बल्कि पूरे शरीर की मसाज करनी है, तभी अभ्यंग स्नान सार्थक होगा
आजकल बालों का झड़ना और त्वचा के इन्फेक्शन आदि का खतरा बहुत बढ़ गया है, जिसका मुख्य कारण है कि आज के साबुन और शैम्पू में SLES , पैराबेन्स और पेट्रोकेमिकल का बहुतायत से उपयोग होना।
यदि आप माह में एक बार भी अभ्यंग स्नान का प्रयोग करते है तो निश्चित रूप से आपकी त्वचा, हड्डियां और बाल हमेशा स्वस्थ बने रहेंगे।
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